करवा चौथ का त्योहार: एक अनोखी परंपरा

करवा चौथ :- करवा चौथ का पर्व उत्तर भारत में प्रचलित है। उत्तर भारत के हर प्रांत में इसे  अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। पति की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए सुहागिन स्त्रियां इस दिन व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और चाँद को देखने के बाद ही व्रत और जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं। व्रत तोड़ने के पूर्व महिलाएं दुल्हन की तरह सजती-धजती हैं, फिर एक गोल करवा या छन्नी में पति का चेहरा और चाँद के दर्शन एवं पूजन करने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।

 

पंजाब में इस त्योहार की अलग ही परंपरा है विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठकर सरगी खाती हैं। इसे खाने के बाद सुहागन स्त्रियां दिनभर के लिए भूखी रहती हैं। दिन में चंद्रमा, भगवान शिव, पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है। दोपहर के वक्त स्त्रियां इस व्रत से संबंधित कथा सुनती हैं। इसके पश्चात रात को चंद्रमा की पूजा की जाती है जिसमें पत्नियां अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।

करवा चौथ का अर्थ है क्या?

करवा का अर्थ मिट्टी का बर्तन और चौथ का अर्थ चतुर्थी तिथि होता है। करवा चौथ के दिन सुहागन स्त्रियां करवे का खास विधि-विधान से पूजन करती हैं। इस व्रत पर शादीशुदा स्त्रियां चंद्रमा की पूजा करती हैं। पूजा की सामग्री में सिन्दूर, कंघी, शीशा, चूड़ी, मेहंदी आदि दान में दिया जाता है। करवा चौथ के चलते बाजारों में महिलाओं की खासी भीड़ दिखाई पड़ती है। महिलाएं नए कपड़ों को खरीदने साथ ही डिजाइनर करवे भी खरीदती हैं।

यह पर्व रिश्तों को मजबूत बनाने वाला होता है जिस कारण यह पति-पत्नी दोनों के लिए ख़ास महत्व रखता है। यही कारण है कि करवा चौथ वाले दिन पत्नी द्वारा अपने पति की लंबी आयु और उसकी सुख-समृद्धि के लिए की गई पूजा-अर्चना पति की जिंदगी में पत्नी की अहमियत को ओर भी ज्यादा बढ़ा देती है।

 

कहा जाता है कि यह व्रत इसीलिए रखा जाता है क्योंकि सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से बचा कर वापिस ले आई थी। तभी से करवा चौथ मनाई जाती है और इसकी विधि विधान द्वारा पूजा करी जाती है।

 

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