(माही शर्मा)- मुलायम सिंह के गढ़ रहे यादवलैंड पर बीजेपी ने धीरे-धीरे पूरी तरह कब्जा जमा लिया है. ऐसे में मैनपुरी उपचुनाव में मिली जीत के बाद से सपा को सियासी संजीवनी मिल गई है अखिलेश यादव चाचा शिवपाल यादव को साथ मिलाने के बाद अब अपने पुराने गढ़ को वापस पाने के लिए नए सिरे से सियासी जमीन तैयार कर रहे हैं ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को बड़ी ताकत के रूप में खड़ी कर सके.
(अखिलेश यादव हुए यादवों के गढ़ में फिर से सक्रिय)
मैनपुरी उपचुनाव के बाद से ही अखिलेश यादव हर सियासी कदम सोच-समझकर रखे इन दिनों इटावा, मैनपुरी, एटा, औरैया, झांसी सहित यादवलैंड वाले इलाके पर खास फोकस कर रहे हैं.अखिलेश यादव फर्रुखाबाद के कायमगंज में पार्टी नेता नवल किशोर शाक्य के भाई की श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुए थे तो झांसी में जेल में बंद पूर्व विधायक दीपनारायण यादव से मुलाकात की थी. 2024 में कन्नौज से खुद चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं और उसके बाद से लगातार दौरा भी कर रहे हैं.शिवपाल के साथ नहीं होने से सपा को इसी इलाके में सियासी नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि इस बेल्ट में उनकी अपनी मजबूत पकड़ रही है.
( अखिलेश का अपनी यूथ ब्रिगेड पर फोकस)
शिवपाल यादव के साथ आने से यह धारणा सपा के पक्ष में जा रही है कि अब पूरा मुलायम परिवार एकजुट है आजमगढ़ सीट पर परिवार के बिखराव का साइड इफेक्ट नजर आया था तो मैनपुरी उपचुनाव में परिवार की एका का लाभ मिला था. यादवलैंड की एक के बाद एक सीट गंवा रही सपा ने मैनपुरी उपचुनाव में अपनी रणनीति बदली.भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव के साथ सारे गिले-शिकवे भुलाकर न सिर्फ उन्हें जोड़ा, बल्कि उपचुनाव से दूर रहने की परंपरा को खत्म कर घर-घर चुनाव प्रचार भी किया. वह विधानसभा क्षेत्रवार लोगों से मिल रहे हैं और सभी को खुद से जोड़ने के अभियान में जुटे हैं.
( नेताजी की राह पर लौटे अखिलेश)
अभी तक यादवलैंड के ज्यादातर लोगों और नेताओं की की पहुंच मुलायम परिवार के अन्य सदस्यों तक थी, लेकिन अखिलेश ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं.क्योंकि 2024 के चुनाव में बीजेपी की नजर यादव वोटबैंक में सेंध लगाने की थी.
( भारतीय जनता पार्टी की नजर यादवो के वोटबैंक पर)
2022 के विधानसभा चुनाव के बाद ही बीजेपी ने भी यादव वोटों को लेकर अपनी रणनीति बदली है. बीजेपी 2024 के चुनाव के लिए गैर-यादव वोटों के बजाय कुल ओबीसी वोटों पर सियासत करती नजर आ रही है.
( यूपी में हैं 8 फीसदी यादव वोटर)
उत्तर प्रदेश में करीब 8 फीसदी वोटर यादव समुदाय से हैं, जो ओबीसी समुदाय की कुल आबादी का 20 फीसदी हिस्सा हैं.यादव वोटर्स के दम पर ही मुलायम सिंह यादव तीन बार और अखिलेश यादव मुलायम सिंह के दौर की पुरानी पीढ़ी भी खत्म हो रही है. ऐसे में नई पीढ़ी पर अखिलेश अपनी छाप छोड़ने में जुटे हैं ताकि यादवलैंड में बीजेपी को अपनी जड़ें जमाने का मौका न मिल सके.
( यूपी में यादव समुदाय का बढ़ता प्रभाव)
उत्तर प्रदेश के इटावा, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद,कुशीनगर जिले को यादव बहुल माना जाता है. इन जिलों में 50 से ज्यादा विधानसभा और एक दर्जन लोकसभा सीटों पर यादव वोटर अहम भूमिका में हैं. सूबे के 44 जिलों में 9 फीसदी यादव हैं जबकि 10 जिलों में ये वोटर 15 फीसदी से ज्यादा है.अखिलेश यादव की रणनीति इन इलाकों में यादव वोटों पर मजबूत पकड़ बनाए रखते हुए मुस्लिम और दलितों को भी जोड़ने की रणनीति है.