देवेन झा (नोएडा) :- आज हम सभी ने देखा कि नोएडा के सेक्टर 93 में बने ट्विन टावर को विध्वंस कर दिया गया और जनता इस बात पर बहुत खुश नजर आयी क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में जनता की जीत हुई, लेकिन मेरा सवाल आप सभी से हैं कि क्या इसमें सिर्फ कंपनी दोषी है ? क्या इसमें सरकार और प्रशासन का कोई दोष नहीं है जिसने ऐसे प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी ? हमने अक्सर यह देखा है कि जब भी कोई ऐसा प्रोजेक्ट आता है तो सरकार और प्रशासन के मिलीभगत से उस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी जाती है l मेरे अनुसार सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सरकार को भी दोषी करार देते हुए उन्हें जनता को मुआवजा देने का आदेश देना चाहिए था l
आइए हम आपको बताते है क्या है पूरा मामला :-
ये बात है साल 2004 कि और दिन था 23 नवंबर, नोएडा अथॉरिटी ने इस दिन सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग का प्लॉट नंबर 4 एमराल्ड कोर्ट को आवंटित किया. इस प्रोजेक्ट के तहत अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी को 14 टावर का नक्शा आवंटित किया. जिसमें सभी टावर ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिल तक पास किए गए. इसके बाद साल 2006, 29 दिसंबर को नोएडा अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के प्रोजेक्ट में पहला संशोधन किया और दो मंजिल और बनाने का नक्शा पास किया. जिसके तहत 14 टावर मिलाकर ग्राउंड फ्लोर के अलावा 9 मंजिल की जगह 11 मंजिल बनाने का नक्शा पास हो गया. इसके बाद टावर 15 का भी नक्शा पास किया गया. इसके बाद नोएडा अथॉरिटी ने 16 टावर का नक्शा पास किया जिसके तहत अब कुल 16 टावर के लिए 11 मंजिल की इजाजत दी गई और इसकी ऊंचाई 37 मीटर की गई l
इसके बाद साल 2009, 26 नवंबर को नोएडा अथॉरिटी ने टावर नंबर 17 का नक्शा पास किया, जिसमें टावर नंबर 16 और 17 पर 24 मंजिल निर्माण का नक्शा बनाया गया और इसकी ऊंचाई 73 मीटर तय कर दी गई. नोएडा अथॉरिटी यहीं नहीं रुकी टावर के नक्शे में तीसरा संशोधन किया गया यह संशोधन 2 मार्च 2012 में किया गया जिसमें टावर नंबर 16 और 17 के लिए एफएआर और बढ़ा दिया गया जिसके तहत इन दोनों टावर की ऊंचाई 40 मंजिल तक करने की इजाजत दे दी गई और ऊंचाई 121 मीटर तय की गई l
दो टावर्स के बीच होनी चाहिए 16 मीटर की दूरी :-
इस मामले में आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष उदय भान सिंह बताते हैं नेशनल बिल्डिंग कोड का नियम है कि किसी भी दो आवासीय टावर के बीच में कम से कम 16 मीटर की दूरी जरूर होनी चाहिए लेकिन इस प्रोजेक्ट में टावर नंबर 1 और ट्विन टावर में 9 मीटर से भी कम की दूरी है. उन्होंने बताया कि जहां पर टावर नंबर 16 और 17 बनाए गए हैं वहां पर बिल्डर ने लोगों को जब फ्लैट दिया था. तो उसे ओपन स्पेस दिखाया गया था, साल 2008 का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि बिल्डर ने एमराल्ड कोर्ट में टावर नंबर 1 से 15 पर कब्जा करना शुरू कर दिया. इसके बाद 2009 में फ्लैट बायर्स ने आरडब्लूए बनाई और इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने का फैसला किया. जिसके बाद संशोधन नक्शे पर तो दिखाए गए लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ और आरडब्ल्यूए और फ्लैट बायर्स के विरोध के बाद भी टावर नंबर 16 और 17 का अवैध तरीके से निर्माण होता रहा जिसको आज ट्विन टावर कहा जा रहा है l
24 अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज हुई FIR :-
ट्विन टावर के अवैध निर्माण के खिलाफ पहले आरडब्लूए नोएडा अथॉरिटी के पास पहुंचा. उदय भान सिंह बताते हैं कि अथॉरिटी ने इस मामले में बिल्डर का साथ दिया, जिसके बाद ये मामला जैसे तैसे हाई कोर्ट तक लेकर जाया गया और 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टावर को तोड़ने का आदेश दे दिया. वहीं इस मामले में 1 सितंबर को अथॉरिटी के सीईओ ने एक कमेटी का गठन किया, 26 घंटे के अंदर ट्विन टावर से जुड़े जांच रिपोर्ट सामने आई. जिसमें 12 से 15 अधिकारियों को इसके लिए जिम्मेदार बताया गया, साल 2021 में एक हाई लेवल एसआईटी का गठन हुआ जिसमें पूरी जांच करके शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी और फिर 4 अक्टूबर 2021 को इस रिपोर्ट के आधार पर नोएडा अथॉरिटी के 24 अधिकारी और कर्मचारियों पर एफआईआर की गई l
पिछले साल ही गिराया जाना था टावर :-
सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2021 को ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया था पर इसके लिए कोर्ट ने 3 महीने का समय दिया था लेकिन तब ऐसा नहीं हो पाया. जिसके बाद इसकी तारीख बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दिया गया, लेकिन तब भी तैयारियां पूरी नहीं हो पाई और टावर नहीं गिर पाया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टावर गिराने वाली कंपनी को 3 महीने का समय और दिया जिसके बाद से 21 अगस्त 2022 को गिराया जाना था. लेकिन तब टावर गिराने वाली कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को एनओसी नहीं मिली थी. इसलिए एक हफ्ते और बढ़ा दिया गया और 28 अगस्त को आज टावर गिरा दिया गया l