आदी शक्ति आर्ट ने बनाया मां पीड़ा की तरंगे नामक शॉर्ट फिल्म

बात आज के दौर की हो या पिछले दौर की हो, बात बस जज्बात की है जज्बातों को दिखाने का तरीका अलग-अलग है| जहां मां-बाप अपने बच्चों को उंगली पड़कर चलना सिखाते हैं पर मां-बाप को उन्हें बच्चों को जरूरत होती है तो वही बच्चे अपने मां-बाप को ठेंगा दिखाते हैं|

इन्हीं जज्बातों के आधार पर हमारी लघु फिल्म “माँ पीड़ा की तरंगे” में कैसे एक मां अपने बच्चों की खुशी के लिए दिन और रात नहीं देखती, और बदलते हुए हालातो के साथ उसके बच्चे भी बदल जाते हैं| हमारी कहानी की मां अपनी हिम्मत ना हारते हुए अपनी बहन की बहू को बेटी के रूप में स्वीकार करती है क्योंकि वो बहू, वो भी किसी की बेटी थी और आज इस घर की बहू है| और बहू बनकर आज सभी बेटी से भी बढ़कर अपना फर्ज अदा करती है|

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इस माँ के लिए वे गहने निकाल कर उसके कदमों में रख देती है बिना किसी स्वार्थ के ऐसी स्थिति को देखकर सबके रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो मां अपने दोनों बेटों का सपने में परेशान देखकर उनकी मदद के लिए लाखों रुपए लेकर साथ आई थी,अपने दोनों बेटे को अनुकूल न पाकर वह लाखों रुपए अपनी बहू के हाथ में थामती है और सब मिलकर वृद्धाआश्रम बनवाने का निर्णय लेते हैं|

यह कहानी जज्बातों को सींचती हुई और स्वार्थियों को एहसास दिलाने का माध्यम बनती है यह कहानी सुषमा द्वारा लिखित और डॉक्टर अभिलाषा द्वारा निर्देशित पूर्णता की खोज में अपूर्णता भरा प्रयास दर्शाता है

 

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